भगवान वेदव्यास द्वारा रचित 'अग्नि पुराण' में अग्निदेव ने
महर्षि वशिष्ठ को विभिन्न उपदेश दियें हैं। इसी पुराण में भगवान नारायण की दिव्य स्तुति की गयी है| महात्मा
पुष्कर कहते हैं कि मनुष्य चित्त की मलिनतावश चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन आदि विभिन्न
पाप करता है, पर जब चित्त कुछ शुद्ध होता है तब उसे इन पापों से मुक्ति की इच्छा
होती है। उस समय भगवान नारायण की दिव्य स्तुति करने से समस्त पापों का प्रायश्चित
पूर्ण होता है। भगवान नारायण की दिव्य स्तुति ही 'समस्त पापनाशक स्तोत्र' है।
राधे-कृष्ण !!
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