शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ?

भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ?

भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ?
ये संसार भगवान ने पुजवाने के लिये नहीं बनाया, जैसे नेता वोट बैंक के लिये अपने एरिया में घूमता है ऐसे भगवान सृष्‍टि करके अवतार लेकर वोट बैंक के लिये नहीं आते अथवा वोट बैंक के लिये भगवान ने ये सृष्‍टि नहीं बनाई । भगवान ने आपको गुलाम बनाने के लिये भी सृष्‍टि नहीं बनार्इ । भगवान ने आपको अपने अलौकिक आनंद, माधुर्य, ज्ञान और प्रेमाभक्‍ति के द्वारा अपने से मिलने के लिये सृष्‍टि बनाई । भगवान परम प्रेमास्‍पद है । बिछड़े हुए जीव अपने स्‍वरूप से मिले इसलिये सृष्‍टि है । वो सृष्‍टि में अनुकूलता देकर, योग्‍यता देकर आपको उदार बनाता है कि इस योग्‍यता का आप ‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’ सदुपयोग करो और प्रतिकूलता, विघ्‍न-बाधा देकर आपको सावधान करता है कि संसार तुम्‍हारा घर नहीं है । ये एक पाठशाला है, यहां से आप यात्रा करके मुझ परमेश्‍वर से मिलने आये हो । इसलिये दुख भी भेजता है । दुख सदा नहीं रहता और सुख भी सदा नहीं रहता । धरती का कोई व्‍यक्‍ति सुख को टिकाये रखे, संभव ही नहीं । दुख को टिकाये रखो, संभव नहीं है क्‍योंकि उसकी व्‍यवस्‍था है । सुख भी आकर तुम्‍हे उदार और परोपकारी बनाने का संदेश देता है । आप सुख के भोगी हो जाते हो तो रावण का रास्‍ता है और सुख को ‘’बहुजन हिताय’’ बांटते हो तो रामजी का रास्‍ता है । सुख को अपना भोग बनाते हो तो कंस का रास्‍ता है और सुख को बहुतों के लिये काम में लाते हो तो कृष्‍ण का रास्‍ता है । ऐसे ही दुख आया तो आप दुख के भोगी मत बनो । दुख आया है तो आपको पाठशाला में सिखाता है कि आप लापरवाही से उपर उठो, आप संसारी स्‍वाद से उपर उठें । संसारी स्‍वाद लेकर आपने कुछ ज्‍यादा खाया है तो बीमारी रूपी दुख आता है अथवा वाहवाही में आप लगे तो विघ्‍न और निंदा रूपी दुख आता है लेकिन वाहवाही में नहीं लगे फिर भी महापुरूषों के लिये कई कई उपद्रव पैदा होते है ताकि समाज को सीख मिले कि महापुरूषों के उपर इतने-इतने उपद्रव आते है, अवतारों पर इतने उपद्रव आते है पर वो मस्‍त रहते है, सम रहते है तो हम काहे को डिगें? हम काहे को घबरायें? ये व्‍यवस्‍था है । कृष्‍ण पर लांछन आये, रामजी पर लांछन आये, बुद्ध पर लांछन आये, कबीरजी पर आये, धरती पर ऐसा कोई सुप्रसिद्ध महापुरूष नहीं हुआ जिन पर लांछन की बौछार न पड़ी हो ।

-  Param Pujya Saint Sri Asharam Ji Bapu

www.hemantdubey.comwww.ramcharitmanas.in

कोई टिप्पणी नहीं: