सोमवार, 20 अगस्त 2012

वास्तविक उन्नति


(परमपूज्य बापूजी की अमृतवाणी)
वास्तविक उन्नति अपने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से, आत्मा-परमात्मा की प्रीति से, आत्मा-परमात्मा में विश्रांति पाने से होती है | जिसने सत्संग के द्वारा परमात्मा में आराम करना सीखा, उसे ही वास्तव में आराम मिलता है, बाकी तो कहाँ हैं आराम ? साँप बनने में भी आराम नहीं, भैंस बनने में भी आराम नहीं है, कुत्ता या कलंदर बनने में भी आराम नहीं, आराम तो अंतर्यामी राम का पता बताने वाले संतों के सत्संग में, ध्यान में, योग में | वहाँ जो आराम मिलता है, वह स्वर्ग में भी कहाँ है !

संत तुलसीदास जी कहते हैं:

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिय तुला एक अंग |
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ||

                                             (श्री रामचरितमानस सुन्दर कांड : ४)

सत्संग की बड़ी भरी महिमा है, बलिहारी है | ....

........ आगे पढने के लिए 'ऋषिप्रसाद' अगस्त २०१२ अंक देखें |

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